Monday, May 20, 2019

सीईसी का जवाब- जरूरी नहीं कि सभी सदस्य एक जैसा सोचे

चुनाव आयोग का विवाद आचार सँहिता के उल्लंघन से जुड़े मामले निपटाने से जुड़ा है। शिकायतों पर कार्रवाई नहीं करने के मामले में 15 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई तो आयोग ने फटाफट योगी आदित्यनाथ और मायावती पर । 72 और 48 घंटे की पाबंदी लगा दी। साथ ही तय किया की आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों ।पर रोज सुबह 11.30 बजे फुल कमीशन की बैठक होगी। इस पर संतोष जताते हुए कोर्ट ने 16 अप्रैल को कोई आदेश देने से इनकार कर दिया था। 16 अप्रैल को आयोग की बैठक हुई भी। लेकिन, उसके वाद से आचार संहिता उल्लंघन के मामलों पर कोई वैठक नहीं हुई। चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने 18 अप्रैल को मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा को नोट भेजा कि आचार संहिता के मामलों पर पारदर्शी प्रणाली जरूरी है। शिकायतें रजिस्टर कर समयबद्ध ढंग से निपटाई जाएं।

इनकी जानकारी रोज वेबसाइट पर डाली जाए। उन्होंने 22 और 25 अप्रैल को रिमांडइर भी भेजे। इसी बीच,राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष मदनलाल सैनी के खिलाफ शिकायत पहुंची। उन्होंने कहा। था कि मुस्लिमों के प्रति कांग्रेस की नीति ऐसी ही रही तो 70 । साल में देश के अनेक टुकड़े हो जाएंगे। लवासा ने उनके खिलाफ आपराधिक केस दर्ज करने, तीन दिन की पाबंदी और सख्त चेतावनी देने का नोट लिखा। हालांकि, अरोड़ा और चुनाव आयुक्त सुशील चंद्र ने पहली गलती बताकर कटारिया को छोड़ दिया। आदेश में
लवासा की राय का जिक्र नहीं था। लवासा ने 25 अप्रैल को अरोड़ा को नोट भेजकर कहा कि आयोग बहु सदस्यीय संस्था है। सदस्यों की असहमति भी आदेश में शामिल करनी चाहिए।
 अरोड़ा ने एक मई को कहा कि 2 मई को फल
कमीशन की बैठक में लवासा के सारे मुद्दों पर चर्चा करेंगे। लेकिन, 2 मई को अरोड़ा नहीं आए। सशील चंद्रा और लवासा में वमत को राय नहीं बनी। तय हुआ कि ।दोनों अपने-अपने विचार नोटिंग में लिख दें। बहुमत का फैसला लागू हो जाएगा। लवासा ने 4 मई को । राय दे दी। बाकी दोनों ने शनिवार तक इस पर राय नहीं दी थी। 4 मई से आज तक कोई बैठक नहीं हुई है। लवासा ने 10 और 14 मई को फिर रिमाइंडर भेजकर पूछा कि इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर क्या कर रहे हैं। अंततः 16 मई को उन्होंने अरोड़ा को पत्र लिखा कि उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया जा रह्म है। ऐसे में आचार संहिता उल्लंघन के मामलों से जुड़ी बैठकों में भाग लेने का कोई मतलब नहीं है।

आम राय नहीं होने पर बहुमत का फैसला मानने का है नियम
आयोग की कार्यप्रणाली को संचालित करने वाले नियमों में कहा गया है। कि प्राथमिकता आम सहमति वाले विचार को देनी चाहिए। लेकिन, आम सहमति नहीं बने तो बहुमत का फैसला देना चाहिए। चुनाव आयोग की। लीगल डिवीजन की राय है कि असहमति रिकॉर्ड नहीं की जा सकती है।

अगर कोई सदस्य चाहे कि राय सार्वजनिक हो तो होनी चाहिए
यदि असहमत सदस्य चाहता है कि उसकी राय सार्वजनिक की जाए तो उस बात को सार्वजनिक किया ही जाना चाहिए। हमारे कार्यकाल में भी असहमति होती थी। लेकिन, बातचीत करके हल कर लेते थे।

विवाद से जुड़े 4 अहम मामले

 गुजरात भाजपा के अध्यक्ष जीतू वधानी सुनवाई हुई। लवासा ने कड़ी कार्रवाई और प्रचार पर पाबंदी की सिफारिश की थी।

प्रधानमंत्री के खिलाफ सेना के नाम वोट मांगने की शिकायत पर लवासा ने कहा कि उन्हें संहिता लागू करने में
सहयोग के लिए कहना चाहिए। लेकिन, क्लीनचिट मिल गई।

वायनाड में राहुल के लड़ने पर मोदी की टिप्पणी पर भी लवासा ने प्रधानमंत्री को नोटिस देने की बात लिखी थी।
दो सदस्य सहमत नहीं थे।

हिंदू आतंकवाद और  अल्पसंख्यकों को लेकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बयान पर लवासा ने उन्हें नोटिस
देकर जवाब मांगने को कहा था। बाकी दो सदस्य खिलाफ थे।

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