Sunday, May 26, 2019

अब प्रधानमंत्री देश को वैश्विक शक्ति बनाने और सामाजिक योजनाओं को बढ़ाने पर ज्यादा जोर देंगे

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत बड़े मार्जिन की जीत के साथ वापस आ रहे हैं। इस  चुनाव ने साबित किया   है कि वे कितने  मशहूर हैं और भारतीय जनता पार्टी को भारत की कायापलट करने के लिए पांच साल और मिले हैं।

 लेकिन इस जीत के बाद हम भारतीय के मन में यह सवाल है कि इन पांच सालों में मोदी क्या करेंगे? सभी के  मन में यह उम्मीदभरा सवाल है। कि गरीबों की मददऔरअर्थव्यवस्था में सुधार के लिए मोदी क्या कदम उठाएंगे हिंदूचरम पंथियों ने चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया। हालांकि मोदी ने कभी उनकी भाषा नहीं बोली। लेकिन उन्होंने खुद को कभी उनसे अलग भी नहीं किया।

एक ओर जहां  मोदी के आलोचकों को लगता है कि वे भाजपा के हिंदुत्ववादी एजेंडे  को आगे बढ़ाएंगे, तो दूसरी तरफ कई विश्लेषक मानते हैं कि मोदी सिर्फ इस एजेंडे पर नहीं चलते हैं, बल्कि आर्थिक सुधारों की दिशा में भी वे आगे बढ़ेंगे। जेएनयू की प्रोफेसर जोया हसन को  लगता है। कि खराब आर्थिक रिकॉर्ड के बावजूद मोदी को बहुमत मिला है, इसलिए वे पार्टी के एजेंडेसे अलग नहीं होंगे। लेकिन जिन लोगों ने मोदी के व्यक्तित्व का नजदीक से अध्ययन किया है,

 वे मानते हैं कि मोदी एक जटिल व्यक्तित्व हैं। वे अलग हैं, आत्मसंयमी हैं, बहुत कम लोगों पर विश्वास करते हैं और कम लोगों के करीबी हैं। वे राष्ट्रवाद और  जनवाद का मिश्रण हैं। स्पष्ट रूप से अगर वे हिंदू  आस्था पर विश्वास करते हैं, तो आर्थिक विकास के लिए प्रतिबद्ध भी हैं। विश्लेषकों को उम्मीद है। अपनी दूसरी पारी में वे व्यावहारिक विकास कार्यक्रमों पर और ज्यादा जोर देंगे। चूंकि अर्थव्यवस्था वैसा प्रदर्शन नहीं कर पाई हैं, जैसा कि 2014 में मोदी ने वादा किया था।

इसलिए वे जानते हैं कि अपनी विरासत और भविष्य के राजनीतिक भाग्य, दोनों के लिए यह मुद्दा महत्वपूर्ण है। मोदी की इच्छा एक बड़ी वैश्विक शक्ति का नेता बनकर उभरने की भी होगी। किंग्स कॉलेज, लंदन में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर हर्ष वी. पंत कहते हैं, 'मुझे नहीं लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी धर्म को लेकर उतने जोश में हैं, जितना कि उनके आलोचक बताते हैं। भारत वैश्विक शक्ति के रूप में क्या भूमिका निभा सकता है और भारत एक उन्नत राष्ट्र कैसे बन सकता है, ये बातें उन्हें आगे बढ़ाती हैं।

 राजनीतिक
विश्लेषक मानते हैं कि मोदी पुरानी महाशक्ति अमेरिका और नई महाशक्ति चीन के बीच की बारीक रेखा पर चलते रहेंगे। भारत स्पष्ट रूप से अमेरिका और चीन  दोनों से ही अच्छे व्यापारिक संबंध रखना चाहता है। वहीं कश्मीर में मोदी अपना नियंत्रण बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं। कई विश्लेषक मानते हैं कि पिछलेएक बड़ी वैश्विक शक्ति का नेता बनकर उभरने की भी होगी।

किंग्स कॉलेज, लंदन में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर हर्ष वी. पंत कहते हैं, 'मुझे नहीं लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी धर्म को लेकर उतने जोश में हैं, जितना कि उनके आलोचक बताते हैं। भारत वैश्विक शक्ति के रूप में क्या भूमिका निभा सकता है और भारत एक उन्नत राष्ट्र कैसे बन सकता है, ये बातें उन्हें आगे बढ़ाती हैं।

पांच सालों के अनुभव के आधार पर मोदी दो तरह से काम करना जारी रखेंगेः पहला आर्थिक और विदेश नीतियों संबंधी पहलों को पहले की ही तरह आगे बढ़ाना, दुसरा खुद को संयमित व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करना। केरल विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर जोसुकुटी चेरिवनथराइल अत्राहम कहते हैं, 'मोदी और अधिक आध्यात्मिक होने का प्रयास करेंगे।

वे हिन्दुत्व के तत्वों से खुद को अलग करेंगे। लेकिन इस एजेंडे को आगे बढ़ाने वालों को नहीं रोकेंगे।' पिछले पांच सालों में मोदी की रणनीति ज्यादा संभलकर चलने और विभिन्न एजेंडा के माध्यम से भारतीयों के हर वर्ग तक पहुंचने की रही है।

 बढ़ती बेरोजगारी के चलते कई विश्लेषक मान रहे थे कि मोदी के समर्थन में कमी आएगी। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय बनाने और हर घर तक गैस सिलेंडर पहुंचाने जैसी गरीबों के लिए बनाई गई योजनाओं को अच्छी प्रतिक्रिया मिली थी। कुछ विश्लेषक  यह मानते हैं कि वे बहुमत का इस्तेमाल सभी के लिए हेल्थ केयर प्लान जैसे बड़े  सामाजिक कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए  करेंगे।

  लेकिन उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता  नई नौकरियों का सृजन होगा। हो सकता है में इसके लिए कंपनियों को फैक्टरियां बनाने के  लिए जमीन देने के नए कानून बनाने पड़ें। इस तरह के भूमि सुधार कार्यक्रम लाने की कोशिश उन्होंने पिछले कार्यकाल में भी की थी, लेकिन प्रस्ताव गिर गया था 

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